As our parent take care about us and fulfill all our requirement according to our necessity, in the same way god fulfill our requirements.
Sunday, October 2, 2011
Secret of Happiness.
As our parent take care about us and fulfill all our requirement according to our necessity, in the same way god fulfill our requirements.
Saturday, October 1, 2011
गांधी जयंती , हम और आप
कल, 2 अक्टूबर, गांधी जयंती है । इसी दिन हमारे पूर्वप्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्मदिन है । ऐसे इस बार रवि वार होने के कारण बहुत लोग ज्यादा खुश नही होंगे। पर इस दिन की सरकारी छुट्टी प्रायः हर किसी को गांधी की याद तो दिला ही देती है । लेकिन शास्त्रीजी का भी यही जन्मदिन है यह बात शायद कम ही लोगों के ध्यान में आती है ।
गांधीजी की हर बात मुझे आज के लिए सही लगती है । शास्त्रीजी के बारे में बहुत नहीं पता है । उन्हें एक ईमानदार राजनेता एवं प्रधानमंत्री के तौर पर जानता हूँ बस। किंतु गांधीजी के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है।
पुरी तरह अहिंसा के मार्ग पर चलना आज समझ मे आता तो है लेकिन उसे अपने जीवन मे कैसे लाया जाये समझ मे नही आता ।
कुछ साल पहले जब मैं एक फिल्म "ळगे रहो मुन्ना" भाई देखा तो लगा शायद गांधी जी के अहिंसा के मार्ग पे हम आज भी चल सकते हैं. लेकिन आज कि परिस्थिति को देख कर नहि लगता कि ये इतना आसान हैं । शायद ये बाते सुन कर कितने लोग मुझे भला बुरा कहेंगे लेकिन जरा सोच के देखे तो वे खुद कितना पालन करते है उस अहिंसा के मार्ग का ।
अगर मै कहूँ कि गांधी जी को अपना आदर्श मानना आसान हैं लेकिन उनके आदर्शो का पालन करना कठिन हैं, तो ये मेरी बात कुछ ज्यादा नहीं होगी ।
Sunday, May 8, 2011
'मदर्स डे ' पर एक भावनात्मक सोच.....
आज मदर्स डे है....
साल में एक बार मदर्स डे के नाम पर मां के भावनाओ को नमन कर लेना हि 'मदर्स डे' का संदेश नही है. यह दिन तो हमे इस बात का एह्शास दिलाता है कि आज के भाग दौर कि जिंदगी में कितना समय है हम लोगो के पास अपने मां के लिये. एक छोटी सी झलक डालते है उन यादो पे जो कभी भी आप या हम भुल नही सकते...
हम अपने दुःख में और सुख में खोए रहते हैं. न तो मां का आँचल याद रहता है और न ही उनके ममता का वो सागर.
याद नहीं रहती हमे वो मां की थपकियां, जरा सा चोट लगे हमें तो मां की आंखों से झर झर
बहते आंसू. शहर से लौटने पर बिना पूछे वही बनाना जो पसंद हो. जाते समय
अनेको पकवान , खाने कि अनेको समाग्री , पोटलियों में डाल देना.
फोन पे जरा बद्ला आवाज सुन कर पुछ्ना क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है न?
देखे तो बोलती-- बहुत दुबला पतला हो गया , खाता नही है क्या?
मंदिर मे रोज प्राथना करती , मेरे बेटे को ठीक रखना प्रभु.
उस पे दया कर प्रभु. उसका ख्याल रख्न्ना प्रभु. उसका ख्याल रख्न्ना प्रभु.
और आज हम कित्ना ख्याल रख्ते है उस देवी का.
हमारे पास उन्हें देने के लिए कुछ नहीं है. हमारे बटुओं में सिर्फ़ झूठ है. गुस्सा है...अवसाद है... अपना बनावटी चिड़चिडापन है.
उनकी आँचल के गांठों में आज भी सुख है दुःख है और हम खोलने जाएं तो हमारे लिए आशीर्वाद के अलावा
वो सब खुशी जो मां के ममता से हमें मिलती है.
" मां तुम तो देवि हो. ..
तेरे आशीर्वाद की ही तो ये चमत्कार है जो हमे खुशी देती है हर पल.
जब भी मन दुखी होता तेरी ममता उस दुख को भी दुर कर देती है उस पल. "
Thursday, September 16, 2010
स्त्री शक्ति
हर सफल पुरुष के पीछे किसी स्त्री का हाथ होता है। कोई भी इंसान अपने जीवन में यूं ही सफल नहीं हो जाता। सफलता की कहानी बहुत लंबी और मुश्किलों से भरी होती है। जीवन के हर मोड पर आने वाली मुश्किलों को आसान करने के लिए प्रकृति ने स्त्री की रचना की। वह मां बन कर उसे अपने आंचल की छांव तले बारिश और धूप से बचाती है। इंसान पहली बार मां की उंगली थामकर ही चलना सीखता है। चलते हुए जब भी गिरता है, मां आगे बढकर उसे थाम लेती है। इसके बाद जब वह युवावस्था में प्रवेश करता है तो उसकी पत्नी जीवन के सफर में न केवल उसकी हमकदम बन कर साथ चलती है, बल्कि उसे जिंदगी जीने का तरीका भी सिखाती है।
Some photos of Jnan (Gyan) prakash.




Today is 2 july 2011. Before 1 year ........
Wednesday, September 8, 2010
ज्ञान प्रकाश की यादें ......
आज इस दुनिया में सब कुछ तो है, मगर उसकी एक झलक नही मिल सकती। उसके वो आवाज नही मिल पाएंगे। मै चाहता हू उसकी एक आवाज सुनु बड़का भैया हो.मगर मै जनता हू की मेरी ये तमन्ना पूरी नही हो सकती फिर भी पता नही क्यों ये दिल कहता है मेरा भाई ज्ञान जी अभी जिन्दा है।
पता नही क्यों उसके नाम के बाद सबलोग 'जी' लगा के बोलते थे। कितना ख़ुशी होती थी हमलोगों को और पता नही कितना खुश होता था वो अपने नाम में 'जी ' सुनकर।
१ जुलाई की रात जब मै उसके साथ रिसेप्सन में गया तो हमदोनो कितना खुश थे। क्या पता था उसको या हमसब को की वो ख़ुशी की रात उसके जीवन का अंतिम रात था।
२ जुलाई की संध्या हमारे घर के लिए अँधेरी संध्या और मेरे उस भाई के लिए मौत की संध्या बन के आई। हँसता खेलता मेरा भाई हमसब को छोड़ के चला गया। और हमसब कुछ भी तो नही कर सके। पहली बार मैंने ये देखा की कैसे किसी के जाने का समय हो जाता है तो बिना किसी कारन के उसके मौत का कारन बनता है और ये कहावत साबित हो जाता है की " ठेस लगके मौत हो जाती है." । मेरी माँ , मेरे पापा , और हम चारों भाई कितना खुश थे अपने पुरे परिवार के साथ। किसी व् चीज की कमी तो नही थी हमलोगों को। लेकिन शायद ये ख़ुशी उस निर्दयी भगवान से देखा न गया और उन्होंने मेरे घर से उस भोले बच्चे जो की अभी अपने बाल अवस्था से मुक्त होकर किशोरावस्था में प्रवेश किया था। लेकिन किशोरावस्था में ही उसको इस जीवन से मुक्ति मिल गयी।
मोबाइल फ़ोन से उसकी मुझसे अंतिम बार बात हुई थी २ जुलाई २०१० को ही दिन में १२.४५ में, जब वो मुझे फ़ोन करके पूछा था कहाँ हैं भैया। मै उस समय घर से पकरीदयाल घर पे आ रहा था.। और ऐसे तो सामने में उससे बाते उसके जाने के लगभग ३० मिनट पहले तक हुई ही थी। लेकिन बस उस दिन के बाद मै सिर्फ ३ भाई ही रह गया। ये दुखद पल शायद जिन्दगी में कभी नही भूल पाउँगा। २ जुलाई को वो इस भूलोक से हमेशा केलिए चला गया और हमसब को रोने और सिर्फ याद करने के लिए अपनी यादे छोड़ गया।
उसके कुछ ही दिन बाद यानि २३ जुलाई से मेरा ५वे सेमेस्टर का परीक्षा भी था। वो परीक्षा के के दिनभी मै नही भूल पाउँगा जब मै किताबे पढने बैठता तो कैसी मनोदशा होती थी। लेकिन परीक्षा में मेरी वो पहले के पढ़े हुए और क्लास में पढ़े हुए topics काम आये। मै संतुस्थ था अपने परीक्षा से। जैसा पेपर्स गया उससे ज्यादा की चाहत भी नही हुई मेरी.....
फिर ६ सितम्बर को मेरा २२ वाँ जन्मदिन फिर उस रात यानि ७ सितम्बर के १२:१५ पू० में जब मेरा रिजल्ट आया तो उम्मीद से लगभग ३० मार्क्स आधिक मिला। ८१.१ % मार्क्स पाने के बाद और अपने क्लास में सर्वोच मार्क्स पाने के बाद फिर से ख्याल आया की 'काश तुम आज होते ज्ञान.............' ।
"और मेरी ये सफलता , मै समर्पित करता हू अपने उस स्व० भाई ज्ञान प्रकाश को." ।
ये ख्याल की 'काश तुम आज होते ज्ञान..' कभी -कभी ही नहि ये तो हमेशा आती है और आती रहेगी . लेकिन ये मनुष्य का जीवन ही ऐसा है .........
" कुछ कर नही सकते हो जीते जाओ , जिन्दगी के खेल खेलते जाओ॥
क्या होगा कुछ पता नही , बस अपने कर्मो को करते जाओ. ॥ "।
ॐ