Wednesday, September 8, 2010

ज्ञान प्रकाश की यादें ......

मेरा भाई ज्ञान प्रकाश जो अब हम लोगो के साथ नहीं है। १६ दिसम्बर १९९५ से २ जुलाई २०१० तक उसका साथ था। उसका प्यारा साथ, बचपन की शरारते, रूठना मानना फिर ज्ञान जी, ज्ञान , बहुत सारे नामो से पुकार के उसको बुलाना। जब वो था तब कभी हमलोगों ने नही सोचा होगा की हम सब का साथ छोड़ के ये बहुत पहले ही चला जायेगा।
आज इस दुनिया में सब कुछ तो है, मगर उसकी एक झलक नही मिल सकती। उसके वो आवाज नही मिल पाएंगे। मै चाहता हू उसकी एक आवाज सुनु बड़का भैया हो.मगर मै जनता हू की मेरी ये तमन्ना पूरी नही हो सकती फिर भी पता नही क्यों ये दिल कहता है मेरा भाई ज्ञान जी अभी जिन्दा है।
पता नही क्यों उसके नाम के बाद सबलोग 'जी' लगा के बोलते थे। कितना ख़ुशी होती थी हमलोगों को और पता नही कितना खुश होता था वो अपने नाम में 'जी ' सुनकर।
१ जुलाई की रात जब मै उसके साथ रिसेप्सन में गया तो हमदोनो कितना खुश थे। क्या पता था उसको या हमसब को की वो ख़ुशी की रात उसके जीवन का अंतिम रात था।
२ जुलाई की संध्या हमारे घर के लिए अँधेरी संध्या और मेरे उस भाई के लिए मौत की संध्या बन के आई। हँसता खेलता मेरा भाई हमसब को छोड़ के चला गया। और हमसब कुछ भी तो नही कर सके। पहली बार मैंने ये देखा की कैसे किसी के जाने का समय हो जाता है तो बिना किसी कारन के उसके मौत का कारन बनता है और ये कहावत साबित हो जाता है की " ठेस लगके मौत हो जाती है." । मेरी माँ , मेरे पापा , और हम चारों भाई कितना खुश थे अपने पुरे परिवार के साथ। किसी व् चीज की कमी तो नही थी हमलोगों को। लेकिन शायद ये ख़ुशी उस निर्दयी भगवान से देखा न गया और उन्होंने मेरे घर से उस भोले बच्चे जो की अभी अपने बाल अवस्था से मुक्त होकर किशोरावस्था में प्रवेश किया था। लेकिन किशोरावस्था में ही उसको इस जीवन से मुक्ति मिल गयी।
मोबाइल फ़ोन से उसकी मुझसे अंतिम बार बात हुई थी २ जुलाई २०१० को ही दिन में १२.४५ में, जब वो मुझे फ़ोन करके पूछा था कहाँ हैं भैया। मै उस समय घर से पकरीदयाल घर पे आ रहा था.। और ऐसे तो सामने में उससे बाते उसके जाने के लगभग ३० मिनट पहले तक हुई ही थी। लेकिन बस उस दिन के बाद मै सिर्फ ३ भाई ही रह गया। ये दुखद पल शायद जिन्दगी में कभी नही भूल पाउँगा। २ जुलाई को वो इस भूलोक से हमेशा केलिए चला गया और हमसब को रोने और सिर्फ याद करने के लिए अपनी यादे छोड़ गया।
उसके कुछ ही दिन बाद यानि २३ जुलाई से मेरा ५वे सेमेस्टर का परीक्षा भी था। वो परीक्षा के के दिनभी मै नही भूल पाउँगा जब मै किताबे पढने बैठता तो कैसी मनोदशा होती थी। लेकिन परीक्षा में मेरी वो पहले के पढ़े हुए और क्लास में पढ़े हुए topics काम आये। मै संतुस्थ था अपने परीक्षा से। जैसा पेपर्स गया उससे ज्यादा की चाहत भी नही हुई मेरी.....
फिर ६ सितम्बर को मेरा २२ वाँ जन्मदिन फिर उस रात यानि ७ सितम्बर के १२:१५ पू० में जब मेरा रिजल्ट आया तो उम्मीद से लगभग ३० मार्क्स आधिक मिला। ८१.१ % मार्क्स पाने के बाद और अपने क्लास में सर्वोच मार्क्स पाने के बाद फिर से ख्याल आया की 'काश तुम आज होते ज्ञान.............' ।
"
और मेरी ये सफलता , मै समर्पित करता हू अपने उस स्व भाई ज्ञान प्रकाश को."
ये ख्याल की 'काश तुम आज होते ज्ञान..' कभी -कभी ही नहि ये तो हमेशा आती है और आती रहेगी . लेकिन ये मनुष्य का जीवन ही ऐसा है .........
" कुछ कर नही सकते हो जीते जाओ , जिन्दगी के खेल खेलते जाओ॥
क्या होगा कुछ पता नही , बस अपने कर्मो को करते जाओ. ॥ "।

6 comments:

  1. "कुछ कर नही सकते हो जीते जाओ , जिन्दगी के खेल खेलते जाओ॥
    क्या होगा कुछ पता नही , बस अपने कर्मो को करते जाओ"

    सच्चे और अच्छे विचार - यही सोच बनी रहे

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  2. सच्चे और अच्छे विचार - यही सोच बनी रहे|

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  3. ओम जी नमस्कार। आप अपने लेखन के लिए विषय बहुत अच्छा चुनते। लाजबाव लिखते हैँ आप। आभार! -: VISIT MY BLOG :- जब तन्हा होँ किसी सफर मेँ ............. गजल को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकते हैँ।

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  4. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  5. आपकी भावनाओं को salaam

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  6. बहुत सुन्दर
    एकदम सटीक लिखा है.
    बधाई ।

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Thanks for your valuable time.