Thursday, September 16, 2010

स्त्री शक्ति

हमारे समाज में स्त्री शक्ति का हमेशा पुजा होता है। दुर्गा पुजा , सरस्वती पुजा या लक्षमी पुजा इन सभी रुप मे हम स्त्री शक्ति का हि तो पुजा करते है। हम सब जानते है कि सीता के बिना राम, राधा के बिना श्याम और पार्वती के बिना शिव शक्ति भी अधुरे है। हमारे धर्म ग्रंथ भी तो यही कहानी दुहराते है।
हर सफल पुरुष के पीछे किसी स्त्री का हाथ होता है। कोई भी इंसान अपने जीवन में यूं ही सफल नहीं हो जाता। सफलता की कहानी बहुत लंबी और मुश्किलों से भरी होती है। जीवन के हर मोड पर आने वाली मुश्किलों को आसान करने के लिए प्रकृति ने स्त्री की रचना की। वह मां बन कर उसे अपने आंचल की छांव तले बारिश और धूप से बचाती है। इंसान पहली बार मां की उंगली थामकर ही चलना सीखता है। चलते हुए जब भी गिरता है, मां आगे बढकर उसे थाम लेती है। इसके बाद जब वह युवावस्था में प्रवेश करता है तो उसकी पत्नी जीवन के सफर में न केवल उसकी हमकदम बन कर साथ चलती है, बल्कि उसे जिंदगी जीने का तरीका भी सिखाती है।

Some photos of Jnan (Gyan) prakash.


























Today (25 may 2011), when the matriculation result 2011 was declared, I saw result of some students. After some time suddenly my heart cried for you, because you were also in class 10 when you went from the earth. I can understand my situation. If you are here then today is also a remembrance day for you and us. But god didn't want to let see us that moment. Where are you? We don't know. We know, you are outside of this world. But I know that you are always in my heart.
""Kaas tum hote gyannnnn. "".


Today is 2 july 2011. Before 1 year ........

Wednesday, September 8, 2010

ज्ञान प्रकाश की यादें ......

मेरा भाई ज्ञान प्रकाश जो अब हम लोगो के साथ नहीं है। १६ दिसम्बर १९९५ से २ जुलाई २०१० तक उसका साथ था। उसका प्यारा साथ, बचपन की शरारते, रूठना मानना फिर ज्ञान जी, ज्ञान , बहुत सारे नामो से पुकार के उसको बुलाना। जब वो था तब कभी हमलोगों ने नही सोचा होगा की हम सब का साथ छोड़ के ये बहुत पहले ही चला जायेगा।
आज इस दुनिया में सब कुछ तो है, मगर उसकी एक झलक नही मिल सकती। उसके वो आवाज नही मिल पाएंगे। मै चाहता हू उसकी एक आवाज सुनु बड़का भैया हो.मगर मै जनता हू की मेरी ये तमन्ना पूरी नही हो सकती फिर भी पता नही क्यों ये दिल कहता है मेरा भाई ज्ञान जी अभी जिन्दा है।
पता नही क्यों उसके नाम के बाद सबलोग 'जी' लगा के बोलते थे। कितना ख़ुशी होती थी हमलोगों को और पता नही कितना खुश होता था वो अपने नाम में 'जी ' सुनकर।
१ जुलाई की रात जब मै उसके साथ रिसेप्सन में गया तो हमदोनो कितना खुश थे। क्या पता था उसको या हमसब को की वो ख़ुशी की रात उसके जीवन का अंतिम रात था।
२ जुलाई की संध्या हमारे घर के लिए अँधेरी संध्या और मेरे उस भाई के लिए मौत की संध्या बन के आई। हँसता खेलता मेरा भाई हमसब को छोड़ के चला गया। और हमसब कुछ भी तो नही कर सके। पहली बार मैंने ये देखा की कैसे किसी के जाने का समय हो जाता है तो बिना किसी कारन के उसके मौत का कारन बनता है और ये कहावत साबित हो जाता है की " ठेस लगके मौत हो जाती है." । मेरी माँ , मेरे पापा , और हम चारों भाई कितना खुश थे अपने पुरे परिवार के साथ। किसी व् चीज की कमी तो नही थी हमलोगों को। लेकिन शायद ये ख़ुशी उस निर्दयी भगवान से देखा न गया और उन्होंने मेरे घर से उस भोले बच्चे जो की अभी अपने बाल अवस्था से मुक्त होकर किशोरावस्था में प्रवेश किया था। लेकिन किशोरावस्था में ही उसको इस जीवन से मुक्ति मिल गयी।
मोबाइल फ़ोन से उसकी मुझसे अंतिम बार बात हुई थी २ जुलाई २०१० को ही दिन में १२.४५ में, जब वो मुझे फ़ोन करके पूछा था कहाँ हैं भैया। मै उस समय घर से पकरीदयाल घर पे आ रहा था.। और ऐसे तो सामने में उससे बाते उसके जाने के लगभग ३० मिनट पहले तक हुई ही थी। लेकिन बस उस दिन के बाद मै सिर्फ ३ भाई ही रह गया। ये दुखद पल शायद जिन्दगी में कभी नही भूल पाउँगा। २ जुलाई को वो इस भूलोक से हमेशा केलिए चला गया और हमसब को रोने और सिर्फ याद करने के लिए अपनी यादे छोड़ गया।
उसके कुछ ही दिन बाद यानि २३ जुलाई से मेरा ५वे सेमेस्टर का परीक्षा भी था। वो परीक्षा के के दिनभी मै नही भूल पाउँगा जब मै किताबे पढने बैठता तो कैसी मनोदशा होती थी। लेकिन परीक्षा में मेरी वो पहले के पढ़े हुए और क्लास में पढ़े हुए topics काम आये। मै संतुस्थ था अपने परीक्षा से। जैसा पेपर्स गया उससे ज्यादा की चाहत भी नही हुई मेरी.....
फिर ६ सितम्बर को मेरा २२ वाँ जन्मदिन फिर उस रात यानि ७ सितम्बर के १२:१५ पू० में जब मेरा रिजल्ट आया तो उम्मीद से लगभग ३० मार्क्स आधिक मिला। ८१.१ % मार्क्स पाने के बाद और अपने क्लास में सर्वोच मार्क्स पाने के बाद फिर से ख्याल आया की 'काश तुम आज होते ज्ञान.............' ।
"
और मेरी ये सफलता , मै समर्पित करता हू अपने उस स्व भाई ज्ञान प्रकाश को."
ये ख्याल की 'काश तुम आज होते ज्ञान..' कभी -कभी ही नहि ये तो हमेशा आती है और आती रहेगी . लेकिन ये मनुष्य का जीवन ही ऐसा है .........
" कुछ कर नही सकते हो जीते जाओ , जिन्दगी के खेल खेलते जाओ॥
क्या होगा कुछ पता नही , बस अपने कर्मो को करते जाओ. ॥ "।