मैं, मेरा, मैं महा ज्ञानी, स्वयं से घिरे हुए,
मैं का महिमा मंडन करते, व्यर्थ स्वर्ग की चिंता करते हो।
अपने अंतर्मन से देखो, यह धरती स्वर्ग रूपी हैं।
क्षल कपट मद तृप्त होकर, अहंकार पूर्ण बाते करते हो,
जीव दया कर्म संयुक्त हो कर देखो, यह धरती स्वर्ग रूपी हैं।
कर्म वीरों की कर्म भूमि, दान वीरों की दान गाथा हैं,
धर्म वीरों के धर्म सन्देश, यह धरती स्वर्ग रूपी हैं।
सर्व गुण सम्पन, सत्यवचन, स्वयं ज्ञान, क्या सिर्फ़ किताबों की शोभा हैं?
दैनिक दिनचर्या में इन्हे अपना कर देखो, यह धरती स्वर्ग रूपी हैं।
धर्म ज्ञान, धर्म कथा महान, क्या स्वयं कभी पाठ किये हो?
धर्म के सत्य संदेशों को जानों, यह धरती स्वर्ग रूपी हैं।
अनुशासन, स्वयं आत्म निरिक्षण, दया, क्षमा, प्रेम, परोपकार,
सर्वे भवन्तु सुखिनः मन्त्र अपना कर देखो, यह धरती स्वर्ग रूपी हैं।
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